श्री प.प. टेंब्ये स्वामीजी का बहुतांश हस्त लिखित साहित्य उनके सर्वोत्तम शिष्य श्री प.प. नृसिंह सरस्वती दिक्षित स्वामी महाराज औरवाड जी ने (अमरापुर में) सुरक्षित संभालकर रखा था| उन्होने “श्री. प.प.वासुदेवानंद सरस्वती पीठ “ संस्था की औखाड में नीव डाली|

प.पू. श्री. वामनराव जी गुळवणी महाराज उनके पास गए | उसी इस्तलिखित ग्रथोंसे प.पू.श्री. दत्त महाराज कविश्वर की सहायता से श्री प.प. टेंब्ये स्वामी जी की जन्म शताब्दी के अवसर पर इस पूरे वाड.मय को ग्रंथ रुप में १२ भागों में प्रकाशित किया | उसी समय प.पू. गुळवणी महाराज जी ने टेंब्ये स्वामीजी के नाम पर संपूर्ण भारत स्तर की संस्था निर्माण करने का विचार पचास साल पहले व्यक्त किया था| उनके इसी विचार को ध्वान में रखते हुए, मनन पूर्वक पुणे के ‘श्री वासुदेव निवास’ के अध्यक्ष प.पू.श्री नारायण काका ढेकणे महाराज जी की अगुवाई में अन्य भक्तों के सहयोग से दिनांक १९अक्टुबर २००२को शरत्पूर्णिमा के शुभ दिन श्री स्वामी महाराज जी का समाधि क्षेत्र गरुडेश्वर (गुजरात) में भारत के प्रमुख श्री दत्त संस्थान के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में श्री प.पू. नारायण काका ढेकणे महाराज तथा अवधुत निवास ट्रस्ट नारेश्वर के अध्यक्ष प.पू. डॉ. धीरूबाई जोशी जी के मार्गदर्शन में “ श्री प.प. वासुदेवानंद सरस्वती टेंब्ये स्वामी महाराज प्रबोधिनी” की स्थापना हुई|

उस समय प्रबोधिनी के इन लक्ष्यों को निर्धा रित किया गया|

  • श्री. प.पु. टेंब्ये स्वामी महाराज जी रचित सभी ग्रंथों का प्रकाशन करना तथा
  • इन ग्रंथों का अन्य भाषाओं में अनुवाद करना
  • संगणक ,इटरनेट, वेबसाइट आदि आधुनिक माध्यमों (साधन) द्वारा महाराज का जीवनकार्य तथा साहित्य का प्रसार करना |
  • श्री टेंब्ये स्वामी महाराज रचित ग्रथों का अध्ययन ,अनुसंधान आदि के लिए विद्यापीठ और महाविद्यालयों को प्रोत्साहित करना, इसके बारे में उन्हें मार्गदर्शन करना,जिससे महाराज के साहित्य का अंतर्भाव पाठ्यक्रम में हो सके|
  • इस प्रबोधिनी में अधिकतम दत्त संस्थान को अंतर्भुत करना |
  • महाराज के साहित्य का प्रकाशन, प्रसार, वितरण में सहायता करना| इन सभी
  • दत्त संस्थानों से मित्रतापूर्ण संबंध रखकर सभी तीर्थस्थानों की एक दुसरे की सहायता से उन्नति करना|
  • महाराज ने आसेतुहिमाचल भ्रमण किया है | जिस स्थान पर महाराज जी के चातुर्मास्य हुए हैं, स्वामी जी ने जहाँ जहॉ निवास किया है उन स्थानों को विकसित करना | वहॉ महाराज का स्मारक निर्माण करना | दैनिक पूजा – अर्चा का प्रबंध करना, महाराज द्वारा रचित वाड्.मय, दर्शन (तत्वज्ञान) उपदेश आदि का प्रसार -करना|