श्री का पालकी श्री दत्तमंदिर स्थापना से शुरू है। स्वामीजी के समय में हर बृहस्पति और शनिचर के दिन पालकी निकलती थी। श्री गुरू प्रतिपदा से वैशाख पूनम तक पालकी उत्सव चलता है। पालकी हर पूनम और अन्य उत्सव के दिन निकाली जाती है तथा भक्तों की इच्छा नुसार उचित धार्मिक शुल्क दफ्तर में जमा करने पर किसी शुभ दिन पर पालकी उत्सव मनाया जाता है।
ब्रह्मवृंद दवारा सोवके (पाटंबर) में फुलों से सजी पालकी जाती है। दत्त मंदिर के सामने पालकी नीचे रखी जाती हैं। पुजारी आरती के बाद उत्सवमूर्ति पालकी में रखते हैं। बाद में जयघोष के साथ पालकी उठाकर ब्रह्मवृंदो दवारा आगे ली जाती है। कुछ तीन परिक्रमाएँ (प्रदाक्षिणा) दत्तमंदिर में होती हैं। हर परिक्रमा में पाँच जगहों पर पालकी रूकती है। दुसरे ठहरने की जगह पद और अष्टकों का गायन किया जाता है। दुसरे ठहरने की जगह पालकी ले जाने तक, चलते वक्त जयघोष किया जाता हैं।

अंत में पालकी ३/५ (तिसरी परिक्रमा / पाँचवाँ ठहरने का स्थान ) ठहरने के स्थान से उदुंबर के पास आती है। तब अंष्टक पूर्ण किए जाते है। उदुंबर की आरती गाकर उत्सवमूर्ति वहाँ से गर्भागार में ले जाती है। पालकी उसी प्रकार आगे ले जाकर उत्तर दिशा में रखी जाती है। इस प्रकार पालकी उत्सव आरती के बाद रात ७.१५ से ९.१५ तक बहुत उत्साह, शांति और गंभीरता से मनाया जाता है। आरती के उपरांत मंत्रपुष्प गाया जाता है। तीर्थ प्रसाद के साथ पालकी उत्सव संपन्न हो जाता है।