सुंदर ते गांव सुंदर ते स्थान ।। तेथे माझे मन राहे सदा ।।१।।
पश्चिमे सागर पूर्वे सह्यगिरी ।। मध्ये सिंधुदुर्ग भूमी भाग ।।२।।
दक्षिण भागात माणगांव क्षेत्र ।। निर्मला पवित्र वाहे तेथे ।।३।।
पर्वत राजीत निर्झर वाहती ।। वृक्षाची ती दाटी काय वर्णू ।।४।।
तेथे यतिराज वासुदेव राहे ।। उभा मागे आहे दत्तात्रेय ।।५।।

“ वह गाँव सुंदर है, वह स्थल (क्षेत्र) सुदंर है। वहाँ मेरा मन हमेशा रमता रहता है।
पश्चिम की ओर सागर है तो पूरब में सह्य पर्वत। बिच में ही सिंधुदुर्ग भूमी का भाग है।
दक्षिण भाग में माणगांव क्षेत्र है जहाँ पवित्र निर्मला नदी बहती है।
कितने पर्वतों से झरने बहते हैं। घने पेडों की सुंदरता कैसे वर्णन करुँ अर्थात अवर्णनीय है।
उसी स्थान पर (क्षेत्र) यतिराज वासुदेव रहते हैं। इनके पिछे स्वामी दत्तात्रय खडे हैं। “

श्री.प.प.वासुदेवानंद सरस्वती टेंब्ये स्वामी जी नरसोबावाडी से लौटते वक्त श्री की आज्ञा, इच्छा से कागल के एक व्यक्ती ने दत्त की मूर्ति स्वामीजी को दे दी। स्वामीजी वह मूर्ति माणगांव ले आए। मंदिर के लिए जगह की समस्या थी एक विधवा औरत मंदिर के लिए अपनी जगह देने के लिए तैयार हुई। महाराज ने स्वयं कष्ट उठाकर गाँव के लोगों की सहायता से आठ दिनों में छोटा-सा मंदिर तैयार किया तथा दत्तमूर्ति की प्रतिष्ठापना की। वह दिन था वैशाख शुद्ध ५ शके १८०५। इसप्रकार माणगांव के मंदिर में प्रत्यक्ष श्री दत्तप्रभू स्वामीजी के सात साथ वर्षो तक रहे। और आज भी प्रत्यक्ष स्वामी महाराज तथा दत्तप्रभू महाराज चैतन्यरुप से माणगांव में होने से, शरण में आनेवाले भक्तजनों के काम आसानी से हो जाते हैं।

ऐसे दत्तमंदिर का बाद में अ.सौ.श्रीमंत इंदिराबाई होळकर जीने इ.स.वैशाख शुद्ध त्रयोदशी दि.१२ मई १९३८ को जीर्णोद्धार (नूतनीकरण) किया। मंदिर की रचना हेमांडपंथ स्वरुप में है। गर्भगृह में हम सबको, श्री त्रिमूर्ति दत्तात्रय की संगमरमर की मूर्ति, बैठे अवस्था में, स्वामीजी की मूर्ति, सरस्वती और आद्य शंकराचार्य की मूर्ति दिखाई देती है। यह रचना जीर्णोद्धार के समय अ.सौ.श्रीमंत इंदिराबाई होळकर जीने की है। दर्भगृह के सामने भव्य सभगृह है।

इस प्रकार स्वामीजी के जन्मस्थान का जीर्णोद्धार करके एक मजले का छोटा-सा घर बनवाया था। यह घर पुराना होने के कारण विद्यमान संस्था ने स्वामीजी के जन्मस्थान का जीर्णोद्धार किया। तत्कालिन अध्यक्ष प.पू.श्री.आबाजी बांदेकर तथा अन्य न्यासियों द्वारा स्वामीजी की ऊँचाई की मूर्ति स्थापित की गई। इसमे ऐसी भावना है कि प्रत्यक्ष स्वामीजी जन्मस्थान से सामने दत्तमंदिर जाने के लिए लौटे हैं। इसी कारण प.प.स्मामी महाराज की भारत की एक मात्र मूर्ति यहाँ देखने मिलती है। यह जन्मस्थान स्वामीजी का है, उसी प्रकार स्वामीजी के भाई प.पू.ब्रह्.मयोगी सीताराम महाराज जी का भी है। उनकी भी सुंदर तसबिर यहाँ लगाई है।

प.प.स्वामी जी की पत्नी अ.सौ.अन्नपूर्णाबाई की समाधि श्री क्षेत्र गंगाखेड जिला परभणी में है। अब यहाँ नया निर्माण कार्य किया गय़ा है। पत्थर पर अन्नपुर्णा माँ की पादुकाओं की स्थापना की गई। उसी प्रकार उनके घर (स्वामीजी के जन्मस्थान पर) पादुकाओं की तसबिगें लगाई गई है।

स्वामी जी के जन्मस्थान के नजदीक बडी इमारत बनाई है। इस इमारत के पास यहाँ आने.वाले प.पू.यतियों के रहने के लिये यतिकुटी बनाई गई। दो अलग कमरें शौचालय स्नानगृह के साथ बनवाए हैं। और छोटा-सा सभागृह, भक्तों को यति महाराजाओं के विचार सुनने मिले इस हेतु बनाया है। इस प्रकार यतिकुटी की इमारत बनवाई है।

प.प.स्वामी महाराज जी ने दत्तमंदिर के पास उस वक्त बनवाया कुआँ भी है। इस कुएँ को भी अ.सौ.श्रीमंत इंदिराबाई होळकरजी ने पत्थर से पक्का बँधवाया है। श्री दत्त मंदिर के पास ही स्वामीजी के समय का उदूंबर (गूलर) वृक्ष है। मंदिर के दोनों ओर लकडी के खंभे स्वामीजी ने स्थापित किए हैं। उस समय आने वाले पिशाचबाधित भक्तों के पिशाच इन खंभों से चिपक जाते तथा अपनी इच्छाएँ (माँगे) स्वामीजी से बताते और इच्छाएँ पूरी होने के बाद पिशाच चले जाते और भक्त पिशाचबाधा से मुक्त हो जाते।

स्वामी जी द्वारा स्थापित उदूंबर के नीचे श्री दत्त की पादुकाएँ भी हैं। उसी प्रकार प.प.स्वामी जी की योगचिंन्हाकित पादुकाएँ भी स्थापित की हैं। आजरा के आजरेकर (साधु) के स्मरण में पश्चिमाभिमुख हनुमान की मुर्ति की प्रतिष्ठापना मंदिर बनाते वक्त की है।

सभागृह में प्रवेश करते समय सामने गणपति की मूर्ति है। उसी प्रकार गर्भगृह में संगमरमर की त्रिमुखी दत्त की मुर्ति, प.प.टेंब्ये स्वामी जी की सिद्धासन स्थिति में मूर्ति है। और स्वामी जी के समय की उत्सव मूर्ति भी है। आद्य शंकराचार्य तथा सरस्वती देवी की मूर्ति है। जिन्होंने श्री दत्तमंदिर पर सुवर्ण कलश स्थापित किया और गुरु प्रतिपदा उत्सव का प्रारंभ किया उन प.पू.नादोंडकर स्वामी महाराज जी का स्मृति स्मारक श्री दत्तमंदिर के सामने ही है।