।। श्रीवासुदेवांगना अन्नपूर्णा प्रसन्न ।।

‘न गृहं गृहमित्याहुर्गृहिणी गृहमृच्यते’ के अनुसार वास्तु का अर्थ घर नहीं बल्कि पत्नी का अस्तित्व ही सचमुच घर होता है| श्री दत्तावतारी टेंब्ये स्वामीजी की अवतार लीला में श्री टेंब्ये शास्त्री जी की धर्मपत्नी के रूप में जिस दिव्य पुण्यत्मा की योजना की, उसका अधिकार कितना होगा?

महासती सौ. अन्नपूर्णा माता तथा पू.सौ. मातोश्री का मायका रांगणागड था और उनके पिताजी हवालदार श्री .बाबाजी गोडे थे | शादी से पहले उनका नाम ‘बयो’ था और शादी के बाद का नाम ‘ सौ. अन्नपूर्णा’ था| वे संतुष्ट स्वभाव की थीं और पती के कार्य में तन्मयता से शामिल होती थीं|

पू. सौ. मातोश्री महान योगिनी थी | शास्त्री जी के दुर्धर और समर्पित जीवन में उन्होंने पूरी शक्ति से सहयोग दिया| वे महिला धर्म का हूबहू पालन करतीं| शास्त्री बुवा ने उन्हें अध्यात्म तथा योग की शिक्षा दी थी| शास्त्री बुवा की पत्नी के पहचान के सिवाय उनकी स्वयं की साधना बहुत प्रगल्भ थी| इसलिए मंदिर के दरवाजे के सामने बहुत समय तक वे समाधि अवस्था में होने की बात उनके चरित्र में मिलती है | यह समाधि अवस्था शास्त्री बुवा को शास्त्र विधि से समाप्त करनी पडी | इससे पू.सौ. मातोश्री जी के योग का अधिकार पता चलता है|

हर- एक सफल पुरूष के पीछे औरत होती है इस न्याय से शास्त्री बुवा की साधना में उनका सहयोग महत्त्व पूर्ण था | छाया की तरह वे पति के पिछे थीं| शादी के बाद भी नैष्टीक ब्रम्ह्मचर्य पालन करते हुए शास्त्री बुवा योग अध्ययन करते, तब वे मंदिर में निवास करते और पू .सौ. मातेश्री मूल घर में रहती शादी के लगभग 9 से 10वर्षो के बाद शास्त्री बुवा का गृहस्थी जीवन शुरू हुआ हुआ| माणगांव छोडने के बाद दोनो वाडी आए | थोडे दिनों के बाद सौ. अन्नपूर्णा बाई के बच्चा पैदा हुआ लेकिन बच्चा मृतावस्था में ही जन्मा |गृहस्ती का बंधन तोडने वाली एक घटना | पहले से ही विरक्त स्वभाव वाले स्वामीजी और अधिक विरक्त बन गए |प्राय: सौभाग्यवती महिलाओं की दो महत्त्वपूर्ण इच्छाएँ होती हैं| पहली,मातृत्व का लाभ और दुसरी, साधवा मृत्यू की प्राप्ति | लौकिक अर्थ से सोचा जाए तो उपेक्षापूर्ण जीवन जीनेवाली सौ. अन्नपूर्णा माता की दोनों इच्छाएँ पूरी हो गयी थी| सौ. अन्नपूर्णा बाई को प. गोविंदस्वामी, प.श्री मौनीस्वामी, प.श्रीकृष्णसरस्वती स्वामी, श्री मारुती बुवा आजरेकर आदि सत्पुरूषों का सत्संग प्राप्त हुआ था|

“उत्तर की ओर जाओ|” इस गुरूदत्त आज्ञा के नुसार तथा प. श्री मौनीस्वामी जी की इजाजत से,शास्त्री बुवा जी श्री नरसिंहवाडी छोडने के बाद कोल्हापुर, औदुंबर, पंडरपूर, बार्शी आदि तीर्थस्थान गए| स्वामीजी के साथ ही माताजी गंगाखेड आई|यही साक्षात्कार के अनुसार पू. सौ. माताजी बीमार हुई |बीमारी में शास्त्री बुवा जी ने उनकी सेवा की | बाद में पू.सौ .मातोश्री को अपनी मृत्यू का एहसास हुआ| उन्होंने स्वामीजी से प्रार्थना की, “ मुझे ब्रम्हस्वरूप का चिंतन करवाओ और अपना सत्य स्वरुप दिखलाओ|” तब “तुम्हारी इच्छा के अनुकूल होगा|” इस शास्त्री बुवा के अभय वचन के बाद परब्रम्ह ,श्री दत्तात्रय के साथ अनन्यता साधकर, शास्त्री बुवा के चरणों पर मस्तक रखकर, सौ. मातोश्रीने अपने दत्तावतारी पति के सामने महायोगी जैसी अहिवात देह त्याग किया | वरदान के अनुसार शास्त्री बुवा ने उन्हें स्वात्मदर्शन दिया |

वह दिन था बैसाख कृष्ण १४(दि.१५-५-१८९१) शुक्रवार दोपहर समय था| बाद में गोदावरी पात्र के नरसोबा मंदिर घाट पर शास्त्री बुवा ने उनका अंतिम संस्कार यथाविधी किया |(इसी जगह पर समाधि स्थान है|)उसके बाद ‘अनाश्रमी न तिष्ठेत क्षणमेकमपि द् विज:|’ के अनुसार पत्नी की मृत्यू के १४वे दिन शास्त्री बुवा ने गोदावरी पात्र के, मारूती मंदीर के चबुतरे पर संन्यास ले लिया|

 

श्री .प.प. श्रीवासुदेवानंद सरस्वती (टेंब्ये ) स्वामीजीने यहाँ से आगे आसेतुहिमाचल पैदल यात्रा की| सब जगह वैदिक धर्म और दत्तभक्ती का प्रचार किया और आखिर गरुडेश्वर में समाधि ले ली| श्री प.प. टेंब्ये स्वामी श्री दत्तसंप्रदाय और सनातन परंपरा के महाचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए | चारो ओर उनकी ओर ख्याति हुई |लेकिन उनकी सहधर्मचारिणी महायोगिनी पू. सौ. अन्नपूर्णा माता की साधना और त्यागमय कठोर तथा प्रसादिक जीवन की ओर स्वामी भक्तों का और संप्रदायों का ध्यान नहीं गया| गंगाखेड का वह इतिहास प्रसिद्ध विश्ववंद्य समाधिस्थान आज तक उपेक्षित था|हाल ही में इस स्थान की मरम्मत की गई है |

ऎसी महान तपस्विनी और महायोगिनी सौ. अन्नपूर्णा माता जी के समाधिस्थल का मरम्मत कार्य का भूमिपूजन (जनवरी २00९को गंगाखेड में हुआ | और अखिर बैसाख कृष्ण १४, शके1931,दिनांक 23मई 2009 में समाधिस्थान मरम्मत का कार्य पूरा हुआ| और सुंदर-सा गुंबद बांधकर पूरा हुआ| इसी दिन मरम्मत किए हुए समाधिस्थल का मंत्रो के साथ शुद्धिकरण किया गया | समाधिशील से निर्मित और माणगांव में स्थापित होनेवाले मातृपद (मातोश्री की पादुकाएँ )तथा प्रत्यक्ष प.प. टेंब्ये स्वामी जी द् वारा भक्तों को दी गयी अभय पादुकाएँ साथ में थी| यह सब समाधि स्थान पर रखकर समाधि की षोडशोपचार पूजा की गई | इसी समय ब्रह् मवृंद द् वारा रुद्र, पवनसुक्त,और भक्तोंद्वारा स्वामीजी के विविध स्तोत्र ,ग्रंथ आदी का वाचन यहाँ किया गया| समाधिस्थान को साडीयाँ पहनाई गई| और कोंछ भरवाई गई | फुलों से सजाया और साडी पहनाया यह समाधिस्थल गुंबद अतिव सुंदर और मनोहर दिखता था| इस प्रकार समाधिस्थान की मरम्मत का कार्यक्रम संपन्न हुआ| उनकी समाधिस्थान शीला से निर्मित पादुकाएँ सौ. अन्नपूर्णा बाई के घर अर्थात माणगांव में श्री प.प. टेंब्ये स्वामीजी के जन्मस्थान पर स्थापित की गई हैं|

।। महासती अन्नपूर्णामां की आरती ।।

अन्नपूर्णे महासती । ओवाळीतो पंचारती ।
वासुदेव जिचा पती । देहधारी त्रयमूर्ती ।।
अन्नपूर्णे महासती । ओवाळीतो पंचारती ।

वासुदेवा निशिदिनी । सेवी काया वाचा मनी ।
पतिव्रता शिरोमणि । वासुदेवी नित्य मती ।।
अन्नपूर्णे महासती । ओवाळीतो पंचारती ।

अनुसरे जैसी छाया । पतीसवे दुजी काया ।
पुण्यपंथे राहाटाया । अवतारी जे दंपती ।।
अन्नपूर्णे महासती । ओवाळीतो पंचारती ।

गंगाखेडी गोदातिरी । वसे निर्गुणामाझारी ।
गुरुसुताची वैखरी । रमो नित्य तुझ्या पदी ।।
अन्नपूर्णे महासती । ओवाळीतो पंचारती ।

मही पाहुनि सर्वही धर्महीन । धरी माणगांवी स्वये दत्तप्राण ।।
रमापुत्र व्यापे जिच्या पंचप्राणा । नमू वासुदेवांगना अन्नपूर्णा ।।
अन्नपूर्णे महासती । ओवाळीतो पंचारती ।

।। महायोगिनी अन्नपूर्णामाता की जय ।।