महिषाख्या सुरमर्दिनी दाक्षायणि माये। माणग्रामस्थ जनोध्दारिणी हर जाये।
भक्तानुग्रह कारिणी सर्वामरपुज्ये। सकलारिष्टे निरसुनि पालय मा सदये।
जय देवी जय देवी श्री यक्षिणी अंबे। आरती ओवाळु तुज हत दैत्य कदंबे।।धृ।।

दुर्गे दृष्कृत नाशिनीं दुर्गासुर हरणे । दुष्ट निबर्हिणी दुस्तर भवनिधी जलतरणे।
दु ख दवाग्नि प्रशमनि दुर्ज्ञेया चरणे । दुर्लभ दर प्रदायिनी वंदे तव चरणे।
जय देवी जय देवी श्री यक्षिणी अंबे। आरती ओवाळु तुज हत दैत्य कदंबे।।१।।

त्रिजगज्जनि भवानि देवी जखुबाई । ग्रामस्वामिनी भगवती आमुची तु आई।
तुजवाचुनि मज रक्षक कोण जगी नाही। म्हणुनि दिवाकर विनवि वंदुनि तव पायी।
जय देवी जय देवी श्री यक्षिणी अंबे । आरती ओवाळु तुज हत दैत्य कदंबे।।२।।

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